संविलियन की घोषणा दिवस पर संविलियन से वंचितों का दर्द ......बहुत ही मार्मिक लेख

 आग; मन और पेट की...बेबसी, आज भी वही खड़ी।


चिरस्मरणीय है आज का दिन, जब हमें 20-22 वर्षों की तपस्या का फल संविलियन के रूप में प्राप्त हुआ था...जी हां!! आज वही 10 जून है, जब हमें ये लगा था कि अब हमें 2 जून की रोटी के लिए बेबस नही होना होगा,, जब हमारे संविलियन की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री महोदय डॉ. रमन सिंह जी ने की थी।किन्तु इस क्रियान्वयन में वर्ष बंधन की लक्ष्मण रेखा ने दिलों में आग और संबंधों में दूरियां ला दी।



क्यों है आग आज भी सुलगती-सुलगती...👇🏼

🔥 लक्ष्मण रेखा-वर्ष बन्धन-- संविलियन की घोषणा के बाद लगा की साथियों के साथ गले मिलकर एक दूसरे को संविलियन की बधाई देंगे।खुशी का माहौल होगा।लेकिन यह इच्छा मन में दबी रह गई क्योंकि संविलियन में 8 वर्ष का बंधन रख दिया गया।संविलियन से वंचित साथी भी अपने थे उन्हें दुखी देख मन आज भी दुखी हो जाता है।


🔥 जनघोषणापत्र और क्रियान्वयन की आस-- जन घोषणा पत्र में 2 वर्ष के पश्चात संविलियन की बात लिखा देखकर एक उम्मीद की किरण जगी, अब संविलियन से वंचित साथियों के भी दुखों का अंत होगा, सत्ता परिवर्तन के बाद यह उम्मीद और बलवती हो गई किन्तु आज तक यह उम्मीद सिर्फ उम्मीद बनकर रह गई।आज भी हमारे साथी संविलियन तो दूर समय पर वेतन के लिए भी आशातीत नज़रों से सरकार की ओर ताक रहे हैं।


🔥 डायन महंगाई और भत्ते पे बट्टा-- समय के साथ मंहगाई भी बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर संविलियन से वंचित साथियों का मंहगाई भत्ते (लगभग ढाई-तीन वर्षों)पर भी डाका डाल दिया गया है। बच्चों के स्कूल की फीस और पढ़ाई के खर्चे पर भी सोचना पड़ रहा है।

🔥 संघीय चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु-- प्रदेश में 14 -15 संघ बने हुए हैं, प्रत्येक संघ से कुछ ना कुछ साथी संविलियन की सौगात से वंचित हैं। जिस प्रकार संविलियन के लिए समेकित प्रयास किया गया था, आज फिर जरूरत है कि संविलियन से वंचित साथियों के लिए मिलकर प्रयास किया जाए, किन्तु पहल कौन करेगा यह यक्ष प्रश्न है।

🔥 कर्तव्य और परिवार के ब्रम्हास्त्र बंधे हमजोली-- अपने कर्तव्यों को कंधों पर लादे, भारत-भाग्य-विधाता को रचने वाले रचनाकार (शिक्षक)आज भी कुछ प्रश्नों पर अनुत्तरित है।

ख़लील धनतेजवी की पंक्ति

"इतनी महंगाई के बाज़ार से कुछ लाता हूँ,
अपने बच्चों में उसे बाँट के शरमाता हूँ...!"

"अपनी नींदों का लहू पोंछने की कोशिश में,
जागते जागते थक जाता हूँ सो जाता हूँ...!!"

नवाज़ देवबन्दी की पंक्ति

'भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक..!!"

कुछ यही स्थिति है हमारे साथियों का..।

🔥 मृगमरीचिका सी जिंदगी-- प्रदेश में नई सरकार के गठन के पश्चात लगा अब कुछ होगा किन्तु बजट सत्र के बीत जाने के बाद भी यह सपना सपना ही रहा, देखते-देखते आचार संहिता लग गई। हमारे साथी उम्मीदों के मरुस्थल में संविलियन की मृगमरिचिका को आज भी खोज रहे हैं।
अब वही मरीचिका पुनः केबिनेट की बैठक के रूप में दिखाई दे रही।


अंतिम में यही कहना चाहूंगा कि-- संविलियन दिवस की खुशी मनाऊँ?? कि मरहम लगाऊं??

नैनों की बस्ती में पानी बहुत है!!
फिर भी ये आग, बुझती नही क्यूं??

संविलियन से वंचित शिक्षक की कलम से 

 

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